वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को आम बजट पेश किया और बजट पेश करने के साथ ही उन्होंने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि सरकार एलआईसी यानी भारतीय जीवन बीमा निगम में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी.
सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम के तहत देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम में अपनी कुछ हिस्सेदारी आईपीओ के ज़रिए बेचने की घोषणा की है. नवभारत टाइम्स की ख़बर के मुताबिक़, इससे 2.10 लाख करोड़ का विनिवेश टारगेट पाने का लक्ष्य है.
अख़बार के अनुसार आईपीओ के बाद एलआईसी देश की सबसे बड़ी कंपनी बन सकती है. इसका बाज़ार वैल्यू आठ से दस लाख करोड़ रुपए तक हो सकता है. यह दशक का सबसे बड़ा आईपीओ हो सकता है और भारतीय बाज़ारों के लिए सऊदी आरामको को सूचीबद्ध कराने जैसा होगा.
हालांकि एलआईसी में हिस्सेदारी बेचने की सरकार की योजना का कर्मचारी संघ विरोध कर रहे हैं. बिज़नेस स्टैंडर्ड के मुताबिक़, एलआईसी कर्मचारी संघों ने आईपीओ के माध्यम से सरकारी बीमा निगम में केंद्र के हिस्सा बेचेने की योजना का विरोध किया है. उनका मानना है कि यह फ़ैसला देश हित के ख़िलाफ़ है.
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने कर्मचारी संघ के प्रवक्ता के हवाले से लिखा है कि एलआईसी में सरकार का हिस्सा बेचने का फ़ैसला देश हित में नहीं है. एलआईसी की स्थापना 1956 में हुई थी.
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60 साल पुरानी इस सरकारी इंश्योरेंस कंपनी का सफर शानदार रहा है. भारत के इंश्योरेंस मार्केट में एलआईसी का 70 फ़ीसदी से ज़्यादा पर कब्ज़ा है.
सरकार जब भी मुश्किल में फंसती है तो एलआईसी किसी भरोसेमंद दोस्त की तरह सामने आई. इसके लिए एलआईसी ने ख़ुद भी नुक़सान झेला है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2.1 लाख करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य रखा है जो कि अब तक का सबसे ज़्यादा है. इनमें से एलआईसी और आईडीबीआई से 90 हज़ार करोड़ रुपए हासिल करने की योजना है. मोदी सरकार ने भारत पेट्रोलियम और एयर इंडिया को पहले से ही बेचने की घोषणा कर रखी है.
साल 1956 में जब भारत में जीवन बीमा से जुड़ी व्यापारिक गतिविधियों के राष्ट्रीयकरण के एलआईसी एक्ट लाया गया था, तब इसका अंदाज़ा कम ही लोगों को रहा होगा कि एक दिन संसद में इसकी बिक्री का प्रस्ताव लाए जाने की नौबत आ जाएगी.
ज़्यादा पुरानी बात नहीं जब साल 2015 में ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) के आईपीओ के वक़्त भारतीय जीवन बीमा निगम ने 1.4 अरब डॉलर की रक़म लगाई थी. चार साल बाद जब ख़राब क़र्ज़ों से जूझ रही आईडीबीआई बैंक को उबारने की बात आई तो एलआईसी ने एक बार फिर अपनी झोली खोल दी.